डा. अर्चना! गोल्ड मेडलिस्ट ऑफ बी.एच.एम . एस, एम. डी, मेडिसिन। ज्ञान का भंडार और ज्ञान की भूखी भी। डाक्टरों के साथ अपना अनुभव साझा कर रही थीं और बड़ी ही सहजता एवं कुशलता से होमियोपैथी की बारिकियों पर प्रकाश डाल रही थीं और निर्देश भी दे रही थीं। इसी क्रम में उन्होंने तीन क्रॉनिक बिमारियों का नाम लेते हूए उन्होंने कहा कि इनका इलाज मैं नहीं करती, क्योंकि मेरे गुरु ने मुझे इसलिए मना कर दिया कि ये बिमारियाँ ठीक नहीं होतीं। मैं बड़ी विनम्रता से इस विषय पर उनसे असहमति जताया और लॉजिक के रूप में दो उदाहरण दिए। भारत के हनिमैन कहे जानेवाले एन सी घोष साहब लिखे हैं कि थायसिस (टीबी) ठीक नहीं होती, जबकि होमियोपैथी को आगे ले जाने वाले कई चिकित्सक, न सीर्फ इसे ठीक करके होमियोपैथी पर लोगों का विश्वास बढ़ाए बल्कि इसे सधारण बिमारी बना कर रख दिया। इसी प्रकार भारत का केंट समझे जानेवाले सत्यव्रत सिद्धांतलंकार साहब लिखते हैं कि वो ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि टायफायड के रोगी उनके यहाँ न आएँ, और आज टायफायड का सबसे सस्ता और अपेक्षाकृत जल्द उपचार होमियोपैथी ने पेश कर दिया। अर्चना जी,इन बातों से न सीर्फ प्रभावित हूई, बल्कि उन्होंने कहा कि अब मैं बुस्टअप हो गई और अब मैं इन सभी बिमारियों का इलाज करूंगी और नए शोध जारी रखूंगी। इस प्रकार होमियोपैथी का एक बैरियर टूटा। कुछ नए शोध जल्द देखने को मिलेंगें।
कठीन चुनौती, आसान समाधान! वैसे तो यह युग चमक- दमक का है, और मैं इसका घोर विरोधी हूँ भी नहीं पर इसका विरोधी जरूर हूँ कि यह चमक- दमक ज्ञान और कौशल का पैमाना कत्तई नहीं हो सकता। लगभग एक सप्ताह पहले एक बुढ़ी माँ का जबड़ा 90 डिग्री पर इस कदर अटक गया कि न मूह बंद हो रहा था और नहीं जबड़ा हिल रहा था, पेशेंट अर्धमूर्क्षितावस्था में पड़ी थी। मैंने दो खुराक दवा देकर अगले सुबह देखने को बोला। अगले सुबह पहूँचा तो मरिज की हालत नाजुक थी, पूरा जबड़ा सूज गया था ,कड़ा हो गया था और 90° पर अटका था। उसी समय एक अर्थोपैडिक्स चिकित्सक के सहयोगी भी पहूँचे थे और जिस प्रकार वो जोर जबरदस्ती कर रहे थे उसमें कहीं भी चिकित्सकीय कुशलता की कोई पुट नहीं दिख रही थी, परिणामस्वरूप वह बूढ़ी माँ दर्द से बेतरह कराहने और चीखने लगी। मैंने उन्हें कुछ भी करने से मना करवाया। और ,पिछले 24 घंटे की तुलनात्मक जानकारी ली तो पत्ता चला कि उस दो खुराक दवा देने के बाद से आंशिक सुधार हूआ है। मैंने आगे की दवा देकर सारे एहतियात बतलाए और आज उनको देखकर खूशी हूई,। जबड़ा पूरी तरह प्ले करने लगा, लिक्विड एवं मुलायम चीजें खाने लगीं। जल्द ही पूर्ण स्वस्थ्य हो जाने की ओर अग्रसर हैं।
यह बच्चा मेरे उपचार का एक प्रयोग और होमियोपैथी के डाइमेंशन का प्रमाण है।इसकी उम्र जब लगभग तीन महीने की थी तब यह मेरे पास आया था, इसके हृदय के चारो वाल्व अविकसित थे और जीवन एवं पोषण हेतु समुचित एवं संतुलित कार्य करने में अक्षम थे। हृदय का रिद्म (Rythm) न सिर्फ अनुपातिक रूप से ठीक नहीं था अपितु जीवन बचाने के लिए भी नाकाफी था और बच्चे को बचाना एक चुनौती थी। आज बच्चा आपके सामने है और इलाज में लगभग 70℅ प्रतिशत सफलता मिल चूकी। आप सभी बच्चे के लिए दुआ करें और हम होमियोपैथी के लिए मेहनत, ताकि दुनिया को होमियोपैथी के अद्भुत कारनामें से रूबरू कराया जा सके।
व्यापकता की जगह संकुचन! विगत वर्षों से चिकित्सा के क्षेत्र में होमियोपैथी ने जिस प्रकार के अप्रत्याशित परिणाम और प्रमाण दिए हैं बावजूद इसके यदि होमियोपैथी के प्रति वही पूराना नजरिया रखा जाता है तो यह होमियोपैथी की त्रासदी के साथ - साथ मुनष्य के अपनी खुद की भी त्रासदी की इबारत है। बिमारियाँ अब बिमारियों की तरह नहीं महामारियों की तरह आ रही हैं और हर बिमारी हर तबके के दरवाजे दस्तक देना शुरू कर दी है। ऐसे में जरूरत तो है एक सुलभ, सस्ती और अत्याधुनिक चिकित्सा पद्धति की जो आधुनिक युग की बिमारियों को मात दे सके। पर दुर्भाग्य से हम फिल्मी कहानियों की तरह अत्याधुनिक चिकित्सा पद्धति (होमियोपैथी) को पुरानी चिकित्सा पद्धति कहकर एक ओर इसका उपहास करते हैं तो दूसरी ओर अपनी मुश्किलें गढ़ते हैं। चलिए एक विध्वंसक बिमारी(ब्रेन स्टोक) से होमियोपैथी द्वारा एक महिला को पूर्णत: लौटा लेने का एक ताजा प्रमाण देखें। लगभग एक माह पहले एक महिला को बोलोरो गाड़ी में लादकर शाम छ:बजे मेरी डिस्पेंसरी में लोग ले आए। महिला पूरी तरह से कोमा(अचेतावस्था) में थी, स्वांस जल्दी -जल्दी चल रहे थे, कुछ भी सुन, समझ और बोल नहीं पा रही थी। मैंने किसी तरह दो बूँद दवा जीभ पर टपका कर उन्हें सीटी स्कैन के लिए भेज दिया। वहाँ जाते जाते इनको होस आ गया और ठीक से बातें करने लगीं। सीटी स्कैन में नए स्टोक के अलावे कई पूरानी जटिलताएँ भी स्पष्ट हूईं।मैंने लोगों को कहीं बाहर दिखाने के सलाह दिए, पर सबने सर्व सम्मति से बिना किसी दबाव के मुझसे इलाज करने की सिफारिश की।मैं आवश्यक दवाएँ देकर उन्हें घर जाने को कहा! हालांकि यह केस कम से कम 48 घंटा गहन चिकित्सा की देखरेख में रखने लायक था, पर ऐसी कोई व्यवस्था न रहने के कारण उन्हें घर भेजना ही विकल्प था। जरूरी एहतियात न बरतने के कारण रात में ही दोबारा स्टोक आ गया और पुन: वो कोमा में चली गई। सुबह सभी लोग घबराकर फीर मेरी डिस्पेंसरी पहूंच गए। सुबह मैंने रिसेट किया और उनके घर ही को चिकित्सालय बना दिया। कई आवश्यक निर्देश दिए और कई कड़े नियम बताकर समय समय पर खूद जाकर देखने लगा और परिणाम आपके सामने है। दुर्भाग्य यह है कि होमियोपैथी पर जैसे जैसे लोगों का विस्वास बढ़ता जा रहा है सरकारें इसके दायरे संकुचित करती जा रही हैं। क्या आपको लगता है कि होमियोपैथी के कालेज और अस्पताल व्यापक तौर पर होने चाहिए जिसमें विद्वान प्रोफेसर और एक्सपर्ट चिकित्सक होने चाहिए।?
आखिर, 14 दिनों बाद GBS से निजात पा स्वस्थ हूआ बच्चा। बहुत- बहुत अभार इस बच्चे के अभिभावकों का जो GBS जैसे मेडिकल इमरजेंसी वाली बिमारी के इलाज के लिए होमियोपैथी पर न सीर्फ विस्वास किए बल्कि सारी दुस्सवारियों के बावजूद अंतत:टीके रहे। होमियोपैथी ने भी निराश नहीं किया और चार दिनों तक चिंताजनक स्थिति में रहा बच्चा पाँचवे दिन से ठीक होने लगा और 14 दिनों में सारे अनुसंगिक लक्षण विलुप्त हो गए और बच्चा स्वस्थय हो गया। हलांकि अभी दवा कुछ दिन और चलेगी क्योंकि यह एक संरचना विकृति जन्य बीमारी है।। इसलिए उस मेकेनिज्म को ठीक करना पड़ेगा जीसके कारण हमारी T cell और B cell अपना कार्य ठीक ढंग से नहीं कर पातीं!